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नज़्म
कभी राहत कभी आज़ार-ए-जाँ मालूम होती है
मोहब्बत एक पैहम इम्तिहाँ मालूम होती है
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
जो तू समझे तो आज़ादी है पोशीदा मोहब्बत में
ग़ुलामी है असीर-ए-इम्तियाज़-ए-मा-ओ-तू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मर्हबा ऐ ख़ाक-ए-पाक-ए-किश्वर-ए-हिन्दोस्ताँ
यादगार-ए-अहद-ए-माज़ी है तू ऐ जान-ए-जहाँ
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
मैं अज़ल से दरमियान-ए-रंज-ओ-राहत हूँ असीर
ग़म को अपनाऊँ कि राहत को करूँ तो क्या करूँ